बात बात में खंजर -छुरी
रोज़ बड़ी आपस की दुरी
इधर तो रुखी-सुखी आफत
उधर पकी रोटी तंदूरी
श्रम के दावेदार है भूखे
मिलती नहीं उचित मजदूरी
अब तो कारोबार फिरौती
घूसखोरी में आगे जूरी
चापलूसों की चांदी कटती
अपने हिस्से महज मज़बूरी
भाई-चारा नहीं अब मिळत
समता की सब सोच अधूरी
शायर है बीमार देश का
कौन कहेगा गज़ले पूरी
No comments:
Post a Comment