अशांत
Monday, August 29, 2011
Thursday, August 25, 2011
उदास लड़की और नम कविता
जब कोई लड़की
होती है उदास
उतर जाता है
धुप का चेहरा
मट मैला हो उठता है आकाश
थम जाती है
हवाओं में घुली खुशबु
थीर हो जाती है
नदी की धार
कुम्हला जाती है
फूलों की काया
सर्द पड़ जाता है मौसम
गिले हो जाते है शब्द
भींग जाती है कविता
कपकपाने लगते है
अभिव्यक्ति के होठ
तिलमिला उठती है
संवेदना की रूह
इर्द गिर्द फ़ैल जाता है
दर्द का अथाह समंदर
कराह उठता है
कलम का कलेजा और
बेजान कोरे कागज़ पर
जन्म लेती है
एक मुकम्मल
नम कविता
सबसे उदास लड़की
की मानिंद
Printed In "Hidustaan" danik paper
3 august 2008
Thursday, May 12, 2011
कहने को आज़ाद वतन है
मज़बूरी, बेबसी, घुटन है
सांसत में जीवन यापन है
वस्त्रहीन,जर्जर जन गण है
सुखा यौवन,भूखा बचपन है
कहने को आज़ाद वतन है
सीनाजोरी और मनमानी
कुर्सी खातिर खीचातानी
तंगहाल जनता बेपानी
जोर जुल्म अन्याय -दमन है
कहने को आज़ाद वतन है
रिश्वतखोरी , भ्रस्त्रचारी
दिन-दिन बदती बेरोजगारी
महंगी ,तंगी ,भूख ,लाचारी
अब न कोई कही शरण है
कहने को आज़ाद वतन है
चीख , पुकार , पीड़ा - क्रंदन है
रोज़ फिरौती बलात्कार-अपहरण है
पंडित , ज्ञानी फिरते वन वन
राम नहीं अब राजा रावण है
कहने को आज़ाद वतन है
ऊँचा है राजा का आसन
प्रजातंत्र का कोरा आश्वासन
भाषण पर चलता है शासन
अमन बिना उदास चमन है
कहने को आज़ाद वतन है
Saturday, May 7, 2011
रुबाई
प्रीती जिसने सिखाई निभाई नहीं
प्यास जिसने जगाई मिटाई नहीं
याद की आग में जिंदगी जल रही
आग जिसने लगायी बुझाई नहीं
रुबाई
जीने की चाह नही, मगर जीता हूँ
पीने की चाह नहीं, मगर पीता हूँ
आदत नहीं, मज़बूरी है यारों ,की
गर्दिशो की फटी चादर को सीता हूँ
रुबाई
कभी सलीब पर, कभी सूली गयी चढ़ाई
किया खुदकशी कभी तो,जिन्दा गयी जलाई
जीती है गुनाहों में मरियम सी लडकियां
मुस्कान की सजा में, हरदम गयी रुलाई
रुबाई
हर बार किनारे में डूबी है किश्तियाँ
हर बार आँधियों में उजड़ी है बस्तियां
हो आग होम की या चिता कही जले
जब भी लगी है आग, जली है बेटियां
कांच की दीवारे है हम
वक़्त के मारे है हम
डूबते किनारे है हम,
रात रंगीन ढल गयी
सुबह के तारे है हम,
अपना साया न अपना हुआ
इतने बेसहारे है हम ,
जिंदगी इश्तेहार है
खोखले नारे है हम ,
पत्थरों के इस शहर में
कांच की दीवारे है हम,
दिल लगता नहीं अब तुम्हारे बिना
वक़्त कटता नहीं अब तुम्हारे बिना
दर्द घटता नहीं तुम्हारे बिना
जिंदगी आँधियों के हवाले हुई
दीप जलता नहीं अब तुम्हारे बिना,
नहीं ठौर अपना , ठिकाना कोई
चैन मिलता नहीं अब तुम्हारे बिना,
हर तरफ है उदासी, रुओसी फिजा
गम बहलता नहीं अब तुम्हारे बिना,
ये जगह भी नहीं, वो जगह भी नहीं
दिल लगता नहीं अब तुम्हारे बिना,
Saturday, April 30, 2011
बुरा समय का हाल हुआ है
रोष सुलग कर लाल हुआ है
मन अगिया बैताल हुआ है,
खाना-पीना, दाना पानी
जीना तक मोहाल हुआ है,
एक अदद रोटी हैरानी
जग सारा पामाल हुआ है,
सोच समझ कर उत्तर देना
टेढ़ा बहुत सवाल हुआ है,
हाथ- मुंह का नाजुक रिश्ता
टुटा तो बबाल हुआ है,
फंसी हवा में नाव पुरानी
चिथेरे- चिथेरे पाल हुआ है,
चोर- उच्चका थातीदार
अब घर का रखवाल हुआ है,
ग़ज़ल हमारी सच कहती है
बुरा समय का हाल हुआ है,
प्रकाशित --"सरज़मी" 6 से 9 अप्रैल 2011
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