रोष सुलग कर लाल हुआ है
मन अगिया बैताल हुआ है,
खाना-पीना, दाना पानी
जीना तक मोहाल हुआ है,
एक अदद रोटी हैरानी
जग सारा पामाल हुआ है,
सोच समझ कर उत्तर देना
टेढ़ा बहुत सवाल हुआ है,
हाथ- मुंह का नाजुक रिश्ता
टुटा तो बबाल हुआ है,
फंसी हवा में नाव पुरानी
चिथेरे- चिथेरे पाल हुआ है,
चोर- उच्चका थातीदार
अब घर का रखवाल हुआ है,
ग़ज़ल हमारी सच कहती है
बुरा समय का हाल हुआ है,
प्रकाशित --"सरज़मी" 6 से 9 अप्रैल 2011
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