Saturday, April 30, 2011

बुरा समय का हाल हुआ है


रोष सुलग  कर   लाल हुआ है
मन अगिया   बैताल   हुआ है,



खाना-पीना,        दाना   पानी
जीना   तक  मोहाल  हुआ   है,



एक    अदद    रोटी      हैरानी
जग   सारा  पामाल  हुआ   है,



सोच   समझ  कर  उत्तर  देना
टेढ़ा   बहुत   सवाल   हुआ   है,



हाथ- मुंह  का  नाजुक  रिश्ता
टुटा   तो   बबाल    हुआ      है,



फंसी   हवा   में   नाव   पुरानी
चिथेरे- चिथेरे    पाल   हुआ है,



चोर- उच्चका            थातीदार
अब  घर  का  रखवाल  हुआ है,



ग़ज़ल  हमारी  सच    कहती है
बुरा  समय   का   हाल  हुआ  है,



                                                                   प्रकाशित --"सरज़मी" 6 से  9 अप्रैल  2011

Wednesday, April 27, 2011

भूख लिखेगा,प्यास लिखेगा


आम   लिखेगा,  ख़ास लिखेगा
वक़्त सबका,इतिहास लिखेगा


रोटी,  किल्लत,    रोग-बीमारी
भूख लिखेगा,   प्यास लिखेगा


तुम्बाफेरी,              सीनाजोरी
घपला-पर्दाफाश         लिखेगा


बलात्कार, अपहरण,   फिरौती
चीरहरण,    उच्छ्वास लिखेगा


राजनीति  अब  महज  तमाशा
संसद  भी  बदहवास   लिखेगा


बिना  हिफाज़त  लोकतंत्र   को
मुर्दाघर   की    लाश    लिखेगा


भूल-चुक       सब     लेनी-देनी
बही-खाता,     विश्वास लिखेगा


दिल्ली सबकी लेकिन फिर भी
दूर लिखेगा,        पास लिखेगा

Saturday, April 23, 2011

होता है बस वक़्त सिकंदर






झूठे  सारे  पीर    पैगम्बर 
देवता-पितर,जंतर -मंतर 


चाहे कोई  कितना  कर ले 
होता है बस वक़्त सिकंदर 


खाक छानते लोग कबीले
योगी-भोगी मस्त कलंदर 


देख बहुत  हैरानी  होती 
ठाट-बाट बापू के बन्दर 


मुल्ला-पंडित चेहरा ओढ़े 
जपते राम चलाते  खंजर 


रावण हो या  राजा  राम 
नहीं मसीहा कोई  रहबर 


न  जीते, न  मरते   बनता 
जैसे हालत सांप छुछुनदर  

कौन कहेगा गज़ले पूरी




बात बात    में    खंजर -छुरी
रोज़   बड़ी  आपस   की  दुरी


इधर तो  रुखी-सुखी  आफत
उधर    पकी     रोटी    तंदूरी


श्रम  के    दावेदार  है    भूखे
मिलती नहीं उचित मजदूरी


अब  तो   कारोबार   फिरौती
घूसखोरी   में   आगे      जूरी


चापलूसों   की  चांदी  कटती
अपने  हिस्से महज मज़बूरी


भाई-चारा  नहीं  अब मिळत
समता  की  सब सोच अधूरी


शायर   है   बीमार   देश  का
कौन   कहेगा   गज़ले    पूरी