पत्रकारिता और साहित्य-लेखन के जरिये समाज में जाग्रति तो लाई ही जा सकती है भले ही सेवा और साधना संत सुधारक व उपदेशक कर सकते है , किन्तु कलमकार अपनी लेखनी के माद्ययम से देश-दुनिया को दृष्टि देने से नहीं चुकता यह दीगर है की लेखकीय अनुभूतियों को समाज कैसे, किस रूप में ग्रहण करता है, यह समाज का दायित्व बनता है मेरा मानना है की सकारात्मक सोच और समय का सच उकेरना रचनाधर्मिता की पहली शर्त है
जाहिर सी बात है कि तेजी से बदलती इस दुनिया में विचारों से भी बदलाव आया है मन में बेचैनिया बड़ी है मानव मूल्यों में गिरावट आई है 'डगर पनघट कि 'कठिन हो गयी है इन सारी विसंगतियों के बावजूद लेखिय दायित्व -बोध का निर्वाह किया जाये
मेरी छोटी सी कोशिश कितना सार्थक होगी ,मुझे पता नहीं फिर भी कुछ कह रहा हूँ ,कर रहा हूँ निरंतर और निरंतर ........................................................अशांत भोला