अशांत
Sunday, November 21, 2010
रुबाई
मुक्कमल शायरी अपनी जख्मों की कमाई है
जहर-सा दर्द पी-पी कर उम्र अपनी गवाई है
जबसे न पीने की कसम खायी है यारों
ग़ज़ल मायूस बहुत, नाराज रुबाई है
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