Saturday, May 7, 2011

कांच की दीवारे है हम



वक़्त के मारे है हम
डूबते  किनारे है   हम,
रात रंगीन   ढल गयी
सुबह के तारे  है हम,
अपना साया न अपना हुआ
इतने बेसहारे है हम ,
जिंदगी   इश्तेहार है
खोखले नारे है हम ,
पत्थरों के इस शहर में
कांच की दीवारे  है    हम,

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